एक गावँ के बहार एक पीपल का पेड़ था। गांव में थोड़ी दूरी पर एक पेड़ के पास एक कुआँ था। वह कुआँ बहुत पुराना और गहरा था।
कुआँ मे जहाँ पानी था वहाँ रौशनी बहुत कम थी। उस कुएं के गहरे पानी मे मीकू और चीकू नाम के दो मेढक रहते थे।
वे पानी मे टांग फैलाकर हमेशा तैरते रहते थे , तैरना उनको बहुत अच्छा लगता था। बैठेने की कोई जगह भी तो नहीं थी, जहाँ पर वे बैठ कर कुछ कर सके ।
पानी की सतह से ऊपर कुआँ की दीवार पर एक गढ्ढा था, उसमे चुनमुन नाम की एक चिड़िया रहती थी। वहाँ पर उसने अपना एक घोसला बना लिया था।
रोज सुबह वह दान चुगने बहार चली जाती थी , वहाँ दूसरे पंछियो से बात करती और शाम को अपने
घोसले मे वापस आ जाती थी।
चुनमुन अक्सर मीकू और चीकू का हाल पूछ लिया करती थी। मीकू और चीकू बहुत ही घमंडी थे , दोनों मे हमेसा छलांग लगाने की होड़ लगी रहती थी।
एक बार चुनमुन दूर लहलहाते फसलो की प्रसंसा करने लगा , उसने उन दोनों को बताया की बहार की दुनिया बहुत ही बड़ी है।
यह सुनकर वो दोनों जोर – जोर से हँसने लगे। और दोनों ने एक लंबी छलांग लगाकर कहा इससे भी बड़ी है, तो चुनमुन ने कहा हां ,इससे भी बड़ी है।
उसकी बात सुनकर फिर दोनों जोर- जोर से हँसने लगे।उनकी हँसी सुनकर चुनमुन को बहुत बुरा लगा और वह चुप हो गया।
समय बीतता गया और एक दिन बरसात का मौसम आ गया। नदी , नाले सब उफनने लगे और एक दिन तो इतना पानी बरसा की बाढ़ आ गयी।
बाढ़ का पानी कुआँ मे भी भरने लगा , बाढ़ का पानी कुआँ मे भी भरने लगा , जिससे चुनमुन ने अपना घोसला छोड़ कर पेड़ की शरण ली।
बाढ़ का पानी इतना बढ़ गया की कुआँ भी पानी मे डूब गया। चीकू – मीकू सोचने लगे की कुआँ कहा गया , क्युकी उन्होंने पहली बार बाहर की दुनिया देखी थी।
विशाल आशमान और दूर तक फ़ैली धरती को देख कर वह हैरान हो गए। उनको चुनमुन की बाते सही लगने लगी , उनको आज चुनमुन की बहुत याद आ रही थी।
और उनका घमंड हमेसा के लिए ख़त्म हो गया।
इसलिए हमें हमेशा अपनी सोच विशाल रखनी चाहिए , कुआँ का मेढक बनकर नहीं रहना चाहिए।
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