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Showing posts from February, 2021

अंतिम कार्य

एक बूढ़ा कारपेंटर अपने काम के लिए काफी जाना जाता था। उसके बनाये लकड़ी के घर दूर -दूर तक प्रसिद्द थे।  लेकिन अब बूढा हो जाने के कारण उसने सोचा कि बाकी की ज़िन्दगी आराम से गुजारी जाए और वह अगले दिन सुबह-सुबह अपने मालिक के पास पहुंचा।   वह बोला , "ठेकेदार साहब , मैंने बरसों आपकी सेवा की है पर अब मैं बाकी का समय आराम से पूजा-पाठ में बिताना चाहता हूँ , कृपया मुझे काम छोड़ने की अनुमति दें ।" ठेकेदार कारपेंटर को बहुत मानता था , इसलिए उसे ये सुनकर थोडा दुःख हुआ पर वो कारपेंटर को निराश नहीं करना चाहता था। उसने कहा , ” आप यहाँ के सबसे अनुभवी व्यक्ति हैं , आपकी कमी यहाँ कोई नहीं पूरी कर पायेगा लेकिन मैं आपसे निवेदन करता हूँ कि जाने से पहले एक आखिरी काम करते जाइये .” “जी , क्या काम करना है ?”  कारपेंटर ने पूछा “मैं चाहता हूँ कि आप जाते -जाते हमारे लिए एक और लकड़ी का घर तैयार कर दीजिये .” , ठेकेदार घर बनाने के लिए ज़रूरी पैसे देते हुए बोला। कारपेंटर इस काम के लिए तैयार हो गया . उसने अगले दिन से ही घर बनाना शुरू कर दिया , पर ये जान कर कि ये उसका आखिरी काम है और इसके बाद उसे और कुछ नहीं करन

घमंड | बच्चों के लिए कहानी

एक गावँ के बहार एक पीपल का पेड़ था। गांव में थोड़ी दूरी पर एक पेड़ के पास एक कुआँ था। वह कुआँ बहुत पुराना और गहरा था।  कुआँ मे जहाँ पानी था वहाँ रौशनी बहुत कम थी। उस कुएं के गहरे पानी मे मीकू और चीकू नाम के दो मेढक रहते थे। वे पानी मे टांग फैलाकर हमेशा तैरते रहते थे , तैरना उनको बहुत अच्छा लगता था। बैठेने की कोई जगह भी तो नहीं थी, जहाँ पर वे बैठ कर कुछ कर सके । पानी की सतह से ऊपर कुआँ की दीवार पर एक गढ्ढा था, उसमे चुनमुन नाम की एक चिड़िया रहती थी। वहाँ पर उसने अपना एक घोसला बना लिया था। रोज सुबह वह दान चुगने बहार चली जाती थी , वहाँ दूसरे पंछियो से बात करती और शाम को अपने घोसले मे वापस आ जाती थी। चुनमुन अक्सर मीकू और चीकू का हाल पूछ लिया करती थी। मीकू और चीकू बहुत ही घमंडी थे , दोनों मे हमेसा छलांग लगाने की होड़ लगी रहती थी। एक बार चुनमुन दूर लहलहाते फसलो की प्रसंसा करने लगा , उसने उन दोनों को बताया की बहार की दुनिया बहुत ही बड़ी है। यह सुनकर वो दोनों जोर – जोर से हँसने लगे। और दोनों ने एक लंबी छलांग लगाकर कहा इससे भी बड़ी है, तो चुनमुन ने कहा हां ,इससे भी बड़ी है। उसकी बात सुनकर फ

दिखावे पड़ता है महंगा |

एक अच्छे कॉलेज की शिक्षा प्राप्त एक युवा नौजवान की बहुत अच्छी नौकरी लग जाती है। उसे कंपनी की और से काम करने के लिए अलग से एक केबिन दे दिया जाता है। वह नौजवान जब पहले दिन office जाता है और बैठ कर अपने शानदार केबिन को निहार रहा होता है।  तभी दरवाजा खट -खटाने की आवाज आती है दरवाजे पर एक साधारण सा व्यक्ति रहता है , पर उसे अंदर आने कहनेँ के बजाय वह युवा व्यक्ति उसे आधा घँटा बाहर इंतजार करनेँ के लिए कहता है।  आधा घँटा बीतनेँ के पश्चात वह आदमी पुन: office के अंदर जानेँ की अनुमति मांगता है, उसे अंदर आते देख युवक टेलीफोन से बात करना शुरु कर देता है।  वह फोन पर बहुत सारे पैसोँ की बातेँ करता है, अपने ऐशो–आराम के बारे मेँ कई प्रकार की डींगें हाँकनेँ लगता है, सामनेँ वाला व्यक्ति उसकी सारी बातेँ सुन रहा होता है, पर वो युवा व्यक्ति फोन पर बड़ी-बड़ी डींगें हांकना जारी रखता है। जब उसकी बातेँ खत्म हो जाती हैँ तब जाकर वह उस साधारण व्यक्ति से पूछता है है कि तुम यहाँ क्या करनेँ आये हो? वह आदमी उस युवा व्यक्ति को विनम्र भाव से देखते हुए कहता है , “साहब, मैँ यहाँ टेलीफोन रिपेयर करनेँ के लिए आया हुँ, मुझे खबर म

एक अनोखा दिया

एक घर मे पांच दिए जल रहे थे। एक दिन पहले एक दिए ने कहा – “इतना जलकर भी मेरी रोशनी की लोगो को कोई कदर नही है तो बेहतर यही होगा कि मैं बुझ जाऊं” वह दिया खुद को व्यर्थ समझ कर बुझ गया । जानते है वह दिया कौन था ? वह दिया था “उत्साह”का प्रतीक । यह देख दूसरा दिया जो “शांति” का प्रतीक था, कहने लगा..मुझे भी बुझ जाना चाहिए। निरंतर “शांति की रोशनी” देने के बावजूद भी “लोग हिंसा कर” रहे है। और “शांति” का दिया बुझ गया । “उत्साह” और “शांति” के दिये के बुझने के बाद, जो तीसरा दिया “हिम्मत” का था, वह भी अपनी हिम्मत खो बैठा और बुझ गया। “उत्साह”, “शांति” और अब “हिम्मत” के न रहने पर चौथे दिए ने बुझना ही उचित समझा। “चौथा” दिया “समृद्धि” का प्रतीक था। सभी दिए बुझने के बाद केवल “पांचवां दिया” “अकेला ही जल” रहा था। हालांकि पांचवां दिया सबसे छोटा था मगर फिर भी वह “निरंतर जल रहा था। तब उस घर मे एक “लड़के” ने प्रवेश किया। उसने देखा कि उस घर मे सिर्फ “एक ही दिया” जल रहा है। वह खुशी से झूम उठा।

कौन किसका सेवक

जब कभी दरबार में अकबर और बीरबल अकेले होते थे तो किसी न किसी बात पर बहस छिड़ जाती थी।  एक दिन बादशाह अकबर बैंगन की सब्जी की खूब तारीफ कर रहे थे। बीरबल भी बादशाह की हां में हां मिला रहे थे। इतना ही नहीं, वह अपनी तरफ से भी दो-चार वाक्य बैंगन की तारीफ में कह देते थे। अचानक बादशाह अकबर के दिल में आया कि देखें बीरबल अपनी बात को कहां तक निभाते हैं।  यह सोचकर बादशाह बीरबल के सामने बैंगन की बुराई करने लगे। बीरबल भी उनकी हां में हां मिलाने लगे कि बैंगन खाने से शारीरिक बीमारियाँ हो जाती हैं इत्यादि। बीरबल की बात सुनकर बादशाह अकबर हैरान हो गए और बोले- "बीरबल! तुम्हारी इस बात का यकीन नहीं किया जा सकता। कभी तुम बैंगन की तारीफ करते हो और कभी बुराई करते हो। जब हमने इसकी तारीफ की तो तुमने भी इसकी तारीफ की और जब हमने इसकी बुराई की तो तुमने। भी इसकी बुराई की, आखिर ऐसा क्यों?" बीरबल ने नरम लहजे में कहा- "बादशाह सलामत! मैं तो आपका से सेवक हूं, बैंगन का नहीं"।

बाज और किसान

बहुत समय पहले की बात है , एक राजा को उपहार में किसी ने बाज के दो बच्चे भेंट किये । वे बड़ी ही अच्छी नस्ल के थे , और राजा ने कभी इससे पहले इतने शानदार बाज नहीं देखे थे। राजा ने उनकी देखभाल के लिए एक अनुभवी आदमी को नियुक्त कर दिया। जब कुछ महीने बीत गए तो राजा ने बाजों को देखने का मन बनाया , और उस जगह पहुँच गए जहाँ उन्हें पाला जा रहा था। राजा ने देखा कि दोनों बाज काफी बड़े हो चुके थे और अब पहले से भी शानदार लग रहे थे । राजा ने बाजों की देखभाल कर रहे आदमी से कहा, ” मैं इनकी उड़ान देखना चाहता हूँ , तुम इन्हे उड़ने का इशारा करो । “ आदमी ने ऐसा ही किया। इशारा मिलते ही दोनों बाज उड़ान भरने लगे , पर जहाँ एक बाज आसमान की ऊंचाइयों को छू रहा था , वहीँ दूसरा , कुछ ऊपर जाकर वापस उसी डाल पर आकर बैठ गया जिससे वो उड़ा था। ये देख , राजा को कुछ अजीब लगा. “क्या बात है जहाँ एक बाज इतनी अच्छी उड़ान भर रहा है वहीँ ये दूसरा बाज उड़ना ही नहीं चाह रहा ?”, राजा ने सवाल किया। ” जी हुजूर , इस बाज के साथ शुरू से यही समस्या है , वो इस डाल को छोड़ता ही नहीं।” राजा को दोनों ही बाज प्रिय थे , और वो दुसरे बाज को भी उसी तरह उड़ना