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Showing posts from January, 2021

किसान और पंख

एक गांव में एक किसान रहता था। एक दिन उस किसान की अपने पड़ोसी से लड़ाई हो गई। उसने अपने पडोसी को भला बुरा कह दिया और काम पर चला गया। थोड़ी देर बाद काम करते करते हैं उसे अपनी गलती का एहसास हुआ। उसने अपने मन को कहीं हुए करने की बहुत कोशिश की, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या करें, तो वह पास के जंगल में एक संत के पास गया।  उसने संत से अपने शब्द वापस लेने का उपाय पूछा। संत ने किसान से कहा , ”तुम खूब सारे पंख इकठ्ठा कर लो , और उन्हें शहर के बीचो-बीच जाकर रख दो”  किसान ने सोचा कि शायद इससे कोई हल निकाल सकता है और उसने ऐसा ही किया।  खूब सारे पंख इकट्ठे किए और उन सबको शहर के बीचो बीच जाकर रख आया और फिर संत के पास पहुंच गया। तब संत ने कहा - ”अब जाओ और उन पंखों को इकठ्ठा कर के वापस ले आओ” किसान वापस गया लेकिन तब तक सारे पंख हवा से इधर-उधर उड़ चुके थे।   किसान खाली हाथ संत के पास पहुंचा। संत ने उससे कहा - "ठीक ऐसा ही तुम्हारे द्वारा कहे गए शब्दों के साथ होता है, तुम आसानी से इन्हें अपने मुख से निकाल तो सकते हो पर चाह कर भी वापस नहीं ले सकते" शिक्षा: हमे

खुश रहने का राज | Happiness's Secret

एक समय एक गांव के पास एक पर्वत था। उस पर्वत में एक महान ऋषि रहा करते थे। जब कभी किसी व्यक्ति को कोई समस्या होती थी तो वह व्यक्ति उन ऋषि के पास अपनी समस्या के समाधान के लिए जाते थे। जो लोग उनके पास अपनी कठिनाईयां लेकर आते थे, वह ऋषि उनका मार्गदर्शन करते थे।  एक दिन एक व्यक्ति उन ऋषि के पास आया। ऋषि ने उस व्यक्ति को बैठने के लिए कहा।  नीचे बैठने के बाद उस व्यक्ति ने ऋषि से एक प्रश्न पूछा।  उसने पूछा - “गुरुदेव मैं यह जानना चाहता हुईं कि हमेशा खुश रहने का राज़ क्या है?”  ऋषि ने उस व्यक्ति कि तरफ देखा और उससे कहा - "यहीं पास में जंगल है, तुम मेरे साथ जंगल में चलो, मैं तुम्हे वहीं पर खुश रहने का राज़ बताऊंगा।" ऐसा कहकर ऋषि और वह व्यक्ति जंगल की तरफ चलने लगे।  रास्ते में ऋषि ने एक बड़ा सा पत्थर देखा और उस व्यक्ति को कहा - "इस पत्थर को साथ ले चलो"  उस व्यक्ति ने पत्थर को उठाया और वह ऋषि के साथ साथ जंगल की तरफ चलने लगा वह आगे बढ़ते जा रहे थे। थोड़े समय बाद उस व्यक्ति के हाथ में दर्द होने लगा लेकिन वह चुप रहा और चलता रहा।  परन्तु जब चलते चलते बहुत समय बीत गया और उस

दो सिर वाला पक्षी

एक बार की बात है, एक समय में एक विचित्र पक्षी रहता था। उसका शरीर एक ही था, लेकिन सिर दो थे। एक शरीर होने के बावजूद उसके दोनों सिरों में एकता नहीं थी और न ही तालमेल था।  वे एक दूसरे से बैर रखते थे। हर जीव सोचने समझने का काम दिमाग से करता ही हैं लेकिन दो सिर होने के कारण उसके दिमाग भी दो थे।  दोनों सर में से एक पूरब जाने की सोचता तो दूसरा पश्चिम। और होता यह था कि टांगें एक कदम पूरब की ओर चलती तो अगला कदम पश्चिम की ओर। वह स्वयं को वहीं खडा पाता था। उसका जीवन बस दो सिरों के बीच की लड़ाई बनकर रह गया था। एक दिन वह भोजन की तलाश में नदी तट पर धूम रहा था कि एक सिर को नीचे गिरा एक फल नजर आया। उसने चोंच मारकर उसे चखकर देखा तो जीभ चटकाने लगा “वाह! ऐसा स्वादिष्ट फल तो मैंने आज तक कभी नहीं खाया। भगवान ने दुनिया में क्या-क्या चीजें बनाई हैं।” “अच्छा! जरा मैं भी चखकर देखूं।” कहकर दूसरे ने अपनी चोंच उस फल की ओर बढाई ही थी कि पहले सिर ने झटककर दूसरे सिर को दूर फेंका और बोला “अपनी गंदी चोंच इस फल से दूर ही रख। यह फल मैंने पाया हैं और इसे मैं ही खाऊंगा।” “अरे! हम दोनों का शरीर तो एक ही हैं। खा

दूध का कुआ

बादशाह अकबर के दरबार की कार्यवाही चल रही थी। सभी दरबारी एक ऐसे प्रश्न पर विचार कर रहे थे जो राज-काज चलाने की दृष्टि से बेहद अहम नहीं था।  सभी एक-एक कर अपनी राय दे रहे थे। बादशाह दरबार में बैठे यह महसूस कर रहे थे कि सबकी राय अलग है। उन्हें आश्चर्य हुआ कि सभी एक जैसे क्यों नहीं सोचते! तब अकबर ने बीरबल से पूछा, “क्या तुम बता सकते हो कि लोगों की राय आपस में मिलती क्यों नहीं ? सब अलग-अलग क्यों सोचते हैं ?” “हमेशा ऐसा नहीं होता, बादशाह सलामत !” बीरबल बोला, “कुछ समस्याएं ऐसी होती हैं जिन पर सभी के विचार समान होते हैं।”  इसके बाद कुछ और काम निपटा कर दरबार की कार्यवाही समाप्त हो गई। सभी अपने-अपने घरों को लौट चले। उसी शाम जब बीरबल और अकबर बाग में टहल रहे थे तो बादशाह ने फिर वही राग छेड़ दिया और बीरबल से बहस करने लगे। तब बीरबल बाग के ही एक कोने की ओर उंगली से संकेत करता हुआ बोला, “वहां उस पेड़ के निकट एक कुआं है। वहां चलिए, मैं कोशिश करता हूं कि आपको समझा सकूं कि जब कोई समस्या जनता से जुड़ी हो तो सभी एक जैसा ही सोचते हैं। मेरे कहने का मतलब यह है कि बहुत सी ऐसी बातें हैं जिनको लेकर लोग

चार चोरों की कहानी । बुरे का अंत बुरा

किसी जंगल में चार चोर रहते थे। वे चारों मिलकर चोरी किया करते थे। जो भी सामान उनके हाथ लगता था वह उसे आपस में बराबर-बराबर बाँट लेते थे।  वैसे तो वे चारों एक-दूसरे के प्रति प्रेम प्रकट करते थे, किन्तु मन-ही-मन एक-दूसरे से ईर्ष्या करते थे। चारों चोर बहुत ही दुष्ट और स्वार्थी प्रवृत्ति के थे। वे चारों अपने मन में यही सोचते थे कि यदि किसी दिन बड़ी चोरी करेंगे और एक बार मोटा माल मिल जाए तो वह अपने साथियों को मारकर सारा माल हड़प लेगा।  चारों चोर इस ही मौक़े की तलाश में थे। लेकिन उन्हें ऐसा मौका अभी तक नहीं मिला था। एक रात चारों चोर चोरी करने के लिए इधर-उधर घूम रहे थे। उन्होंने एक अमीर सेठ के घर में सेंध लगाई और घर के अन्दर घुसकर हीरे-जवाहरात, सोना-चाँदी, रूपया-पैसा सब कुछ लूटकर भाग गए।  चारों चोर पुलिस से बचने के लिए दो दिन तक जंगल में भूखे-प्यासे भटकते रहे। सेठ ने चोरी की शिकायत पुलिस में दर्ज करा दी थी। सेठ की पुलिस विभाग में भी अच्छी जान-पहचान थी।  चोरों को पकड़ने के लिए शहर के चप्पे-चप्पे पर पुलिस फैली हुई थी। जंगल से निकलना चोरों के लिए खतरे से खाली नहीं था। चोरों की इच्छा थी

राजू और जादुई माचिस

राजू और चिंकी अच्छे दोस्त थे वह एक ही स्कूल में पढ़ा करते थे। एक दिन स्कूल की छुट्टी हुई। सब बाहर जाने लगे।  राजू परेशान सा दिख रहा था तो चिंकी ने कारण पूछा। राजू ने घबराते हुए बताया - “अगले हफ्ते से एग्जाम हैं, डर लग रहा है।”  यह सुनकर चिंकी हंस पड़ी- “लगता है, तुम एग्जामोफोबिया के शिकार हो गए हो। मंथली टेस्ट में भी तुम ऐसे ही डरे हुए थे। मार्क्स तो अच्छे ही आए थे तुम्हारे। फिर डर कैसा?”  रमेश ने चिढ़ाते हुए कहा, “यह ऐसा ही है। जब कभी हम स्कूल के लिए थोड़ा लेट हो जाते हैं, तब भी यह ऐसा ही घबरा जाता है। इसका कुछ नहीं हो सकता।”  एक के बाद एक सारे दोस्त राजू को चिढ़ाने लगे, तो चिंकी ने बात बदलते हुए कहा, “बहुत हो गया। तुम सब इसे सपोर्ट करने की जगह इसका मजाक उड़ा रहे हो। अच्छे दोस्त ऐसा नहीं करते।”  दूसरे दिन स्कूल में लंच ब्रेक हुआ, तो बच्चे मस्ती करने लगे। राजू चुपचाप एक कोने में अकेला बैठा था। चिंकी ने पूछा, तो राजू ने कहा, “एग्जाम डेट सुनने के बाद से मेरा तो खाने का मन ही नहीं है। मुझे तो आज रात नींद भी नहीं आएगी।”  चिंकी पहले तो मुसकराई, फिर धीरे से बोली, “क्या तुम शाम को मेरे घर आना

सबसे बड़ा गरीब कौन?

एक महात्मा भिक्षु भ्रमण करते हुए नगर में से गुज़र रहे थे। मार्ग में उन्हें एक रुपया मिला।  महात्मा तो विरक्त और संतोषी व्यक्ति थे। वे भला उसका क्या करते?  अतः उन्होंने किसी गरीब या दरिद्र को यह रुपया देने का विचार किया।  वे कई दिन तक तलाश करते रहे लेकिन उन्हें कोई दरिद्र नहीं मिला। एक दिन उन्होंने देखा कि एक राजा अपनी सेना सहित दूसरे राज्य पर चढ़ाई करने जा रहा है।  साधु महात्मा ने वह रुपया राजा के ऊपर फेंक दिया।  इस पर राजा को नाराजगी भी हुई और साथ ही साथ आश्चर्य भी हुआ क्योंकि रुपया एक साधु ने फेंका था। राजा ने साधु से ऐसा करने का कारण पूछा। साधु ने धैर्य के साथ कहा- ‘राजन्! मैंने रास्ते में एक रुपया पाया, उसे किसी दरिद्र को देने का निश्चय किया। लेकिन मुझे तुम्हारे बराबर कोई दरिद्र व्यक्ति नहीं मिला, क्योंकि जो इतने बड़े राज्य का अधिपति होकर भी दूसरे राज्य पर चढ़ाई करने जा रहा हो और इसके लिए युद्ध में अपार संहार करने को उद्यत हो रहा हो, उससे ज्यादा दरिद्र कौन होगा?’ राजा का क्रोध शान्त हुआ और अपनी भूल पर पश्चात्ताप हुआ।  यूज राजा ने अपनी सेना पीछे ली और वापिस अपने देश को प्रस्थान किया

बंदरों की भेड़चाल | The monkeys experiment

एक बार कुछ बंदरों को एक बड़े से पिंजरे में डाला गया और वहां पर एक सीढी लगाई गई। सीढी के ऊपरी भाग पर कुछ केले लटका दिए गए। उन केलों को खाने के लिए एक बन्दर सीढी के पास पहुंचा। जैसे ही वह बन्दर सीढी पर चढ़ने लगा, उस पर बहुत सारा ठंडा पानी गिरा दिया गया और उसके साथ-साथ बाकी बंदरों पर भी पानी गिरा दिया गया। पानी डालने पर वह बन्दर भाग कर एक कोने में चला गया। थोड़ी देर बाद एक दूसरा बन्दर सीढी के पास पहुंचा। वह जैसे ही सीढी के ऊपर चढ़ने लगा, फिर से बन्दर पर ठंडा पानी गिरा दिया गया और इसकी सजा बाकि बंदरों को भी मिली और साथ-साथ दूसरे बंदरो पर भी ठंडा पानी गिरा दिया गया। ठन्डे पानी के कारण सारे बन्दर भाग कर एक कोने में चले गए। यह प्रक्रिया चलती रही और जैसे ही कोई बन्दर सीढी पर केले खाने के लिए चढ़ता, उस पर और साथ-साथ बाकि बंदरों को इसकी सजा मिलती और उन पर ठंडा पानी डाल दिया जाता। बहुत बार ठन्डे पानी की सजा मिलने पर बन्दर समझ गए कि अगर कोई भी उस सीढी पर चढ़ने की कोशिश करेगा तो इसकी सजा सभी को मिलेगी और उन सभी पर ठंडा पानी डाल दिया जाएगा। अब जैसे ही कोई बन्दर सीढी के पास जाने की कोशिश करता तो बाकी सारे

आत्मविश्वास और निर्भयता

एक बार एक व्यवसायी था जिसका व्यवसाय पूरी तरह से कर्ज से डूब गया था। वह इतनी बुरी हालत में था कि उसका व्यवसाय बंद होने के कगार पर आ गया था।  एक दिन वह बहुत चिंतित व निराश होकर एक बगीचे में बैठा था और सोच रहा था कि काश कोई उसकी कंपनी को बंद होने से बचा ले।   वो ये सब सोच ही रहा था तभी एक बूढ़ा व्यक्ति वहां पर आया और बोला – आप बहुत चिंतित लग रहे है, कृपया अपनी समस्या मुझे बताइये शायद मैं आपकी मदद कर सकूं | व्यवसायी ने उस बूढ़े आदमी कि तरफ देखा और उसको अपनी समस्या बताई। व्यवसायी की समस्या सुनकर बूढ़े व्यक्ति ने अपनी जेब से चेकबुक निकाली और एक चेक लिखकर व्यवसायी को दिया और कहा – तुम यह चेक रखो और ठीक एक वर्ष बाद हम यहाँ फिर मिलेंगे तो तुम मुझे यह पैसे वापस लौटा देना। व्यवसायी ने चेक देखा तो उसकी आँखे फटी रह गयी – उसके हाथों में 50 लाख का चेक था जिस पर उस शहर के सबसे अमीर व्यक्ति जॉन रोकफेलर के साइन थे। उस व्यवसायी को यह विश्वास नहीं हो पा रहा था कि वह बूढ़ा व्यक्ति और कोई नहीं बल्कि उस शहर का सबसे अमीर व्यक्ति जॉन रोकफेलर था। उसने उस बूढ़े व्यक्ति को आस-पास देखा लेकिन वह व्यक्ति वहां से जा चुका

एक मनुष्य की कीमत क्या होती है

एक बच्चा अपने पिता के साथ लोहे कि दुकान पर काम करता था। एक दिन उस बच्चे ने अचानक अपने पिता से एक सवाल पुछा – “पिताजी इस दुनिया में मनुष्य की क्या कीमत होती है?” पिता उस बच्चे से ऐसा गंभीर सवाल सुन कर हैरान रह गये। फिर थोड़ी देर बाद बोले - “बेटे एक मनुष्य की कीमत आंकना बहुत मुश्किल है, वो तो अनमोल है.” बालक – क्या सभी मनुष्य इतने ही कीमती और महत्त्वपूर्ण होते हैं? पिता ने जवाब दिया – हाँ बेटे। सभी मनुष्य इतने ही कीमती और महत्त्वपूर्ण होते हैं। बालक कुछ कुछ देर सोचा फिर अपने पिता से एक और सवाल किया – "तो फिर पिताजी इस दुनिया मे कोई गरीब तो कोई अमीर क्यो है?" सवाल सुनकर पिता कुछ देर तक शांत रहे और फिर बच्चे से स्टोर रूम में पड़ा एक लोहे का रॉड लाने को कहा। रॉड लाते ही पिता ने बच्चे से पुछा – " बताओ इसकी क्या कीमत होगी?" बच्चा – पिताजी" इसकी कीमत 200 रूपये तक होगी" पिताजी – "अगर मै इसके बहुत से छोटे-छटे कील बना दू तो इसकी क्या कीमत हो जायेगी?" बालक कुछ देर सोच कर बोला – "तब तो ये और महंगा बिकेगा लगभग 1000 रूपये का" पिताजी – "अगर मै इस ल

मेंडक और गड्ढा

एक जंगल था। वहां कई सारे जीव जन्तु रहा करते थे। एक बार एक मेंढकों का झुंड जंगल के रास्ते से गुजर रहा था। रास्ते में एक गहरा गड्ढा था, अचानक दो मेंढक उस गड्ढे में गिर गये।  जब दूसरे मेंढकों ने देखा कि गढ्ढा बहुत गहरा है तो ऊपर खड़े सभी मेढक चिल्लाने लगे - ‘गढ्ढा बहुत गहरा है, तुम दोनों इस गढ्ढे से नहीं निकल सकते।' उन दोनों मेढकों ने ऊपर देखा लेकिन शायद ऊपर खड़े मेंढकों की बात नहीं सुन पा रहे थे। वे दोनों गड्ढे से निकलने बार बार उछल रहे थे मगर कामयाब नही हो पा रहे थे।  ऊपर खड़े मेंढक लगातार कहते रहे - ‘तुम दोनों बेकार में मेहनत कर रहे हो, तुम दोनों को उम्मीद छोड़ देनी चाहियें। तुम नहीं निकल सकते। गड्ढे में गिरे दोनों मेढकों में से एक मेंढक ने ऊपर खड़े मेंढकों की बात सुन ली और निराश होकर एक कोने में बैठ गया। दूसरे मेंढक ने प्रयास जारी रखा, वो जितना वो उछल सकता था, उछलता रहा। बहार खड़े सभी मेंढक लगातार कहते रहे - तुम नहीं निकाल सकते पर वो मेंढक शायद उनकी बात नहीं सुन पा रहा था। वो उछलता रहा और काफी कोशिशों के बाद आखिरकार वो बाहर आ गया।  दूसरे मेंढकों ने कहा - ‘क्या तुमहे हमारी बात नहीं सुन

बिल्ली और लोमड़ी

एक बार एक बिल्ली और एक लोमड़ी दोस्त थे वो दोनो एक बार शिकारी कुत्तों के बारे में चर्चा कर रही थीं। मुझे तो इन शिकारी कुत्तों से नफरत हो गयी है - लोमड़ी ने कहा। बिल्ली बोली - हां! मुझे भी।  आगे लोमड़ी नें कहा - मानती हूँ कि ये बहुत तेज दौड़ते है, पर मुझे पकड़ पाना इनके बस की बात नहीं। मैं इन कुत्तों से बचकर दूर निकल जाने के कई तरीके जानती हूँ। कौन-कौन से तरीके? बिल्ली ने जिज्ञासावश पूछा। लोमड़ी ने शेखी बघारते हुए कहा - कई तरीके हैं, कभी मैं काँटेदार झाडि़यों में से होकर दौड़ती हूँ तो कभी घनी झाडि़यों में छिप जाती हूँ। और कभी किसी माँद में घुस जाती हूँ। इन कुत्तों से बचनें के अनेक तरीको में से ये तो कुछ ही हैं। बिल्ली ने विन्रतापूर्वक कहा - मेरे पास तो सिर्फ एक ही अच्छा तरीका हैं। ओह! केवल एक ही तरीका? बहुत दुःख की बात है। खैर, मुझे भी तो बताओ वह तरीका? लोमड़ी ने पूछा। बताना क्या है, अब मैं उस तरीके पर अमल करनें जा रही हूँ। उधर देखो, शिकारी कुत्ते दौड़ते हुए आ रहे हैं। यह कहते हुए बिल्ली कूदकर एक पेड़ पर चढ़ गई।  अब कुत्ते उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकते थे। शिकारी कुत्तों ने लोमडी़ का पीछा कर

आलसी मेंडक

Boiled Frog | Motivational Story एक बार की बात है, एक गांव में तेज बरसात हुई और पानी के साथ काफी सारे मेंडक घरों के आसपास आ गए। वहीं पास में एक मेंडक ने घर के अंदर छलांग लगाई और एक बर्तन में जा गिरा। बर्तन के नीचे आग जल रही थी तो सब मैंडको ने आवाज़ लगाई कि छलांग लगा के पानी से बाहर आ जा। लेकिन वो आलसी था। उसके बाद पानी धीरे धीरे गर्म होता जा रहा था तो मेंढक पानी के तापमान के अनुसार अपने शरीर के तापमान को समायोजित कर लेता था।   जैसे जैसे पानी का तापमान बढ़ता जाता वैसे वैसे मेंढक अपने शरीर के तापमान को भी पानी के तापमान के अनुसार एडजस्ट करता जाता| लेकिन पानी के तापमान के एक तय सीमा से ऊपर हो जाने के बाद मेंढक अपने शरीर के तापमान को एडजस्ट करने में असमर्थ हो गया।  अब मेंढक स्वंय को पानी से बाहर निकालने की कोशिश करने लगा लेकिन वह अपने आप को पानी से बाहर नहीं निकाल पाया। वह पानी के बर्तन से एक छलांग में बाहर निकल सकता है लेकिन अब उसमें छलांग लगाने की शक्ति नहीं रही। क्योंकि उसने अपनी सारी शक्ति शरीर के तापमान को पानी के अनुसार एडजस्ट करने में लगा दी। आखिर में वह तड़प तड़प मर गया। शिक्षा: मेंढक

शेर और खरगोश

एक घने जंगल में एक खतरनाक शेर रहता था। वह रोज एक जानवर का शिकार जरूर करता था। सभी जानवर उस शेर से घबराते थे। शेर रोज शिकार करता था इसलिए सभी जानवर बोहोत दुखी थे। सब जानवरों ने इस समस्या को हल करने के लिए एक मीटिंग रखी। सबने अपने अपने विचार रखें। सभी एक विचार पर सहमत हुए। सब ने तय किया कि शेर का भोजन बनके रोज एक प्राणी उसकी गुफा में जायेगा। यह बात शेर को बताई गई। शेर और अन्य प्राणियों के बीच समझौता हुआ।  अब शेर के भोजन के लिए रोज एक प्राणी को उसकी गुफा में जाना पड़ता था।  एक दिन एक खरगोश की बारी आई। उसे शेर के भोजन के समय तक उसकी गुफा में पहुँचना था।  खरगोश बहुत चतुर था। उसने शेर को खत्म करने की योजना बनाई। खरगोश जानबूझकर बहुत देर से शेर के पास पहुँचा। अब तक शेर के भोजन का समय बीत चुका था। उसे बहुत जोर की भूख लगी थी। इसलिए खरगोश पर उसे बहुत गुस्सा आया। ”तुमने आने में इतनी देर क्यो कर दी?“-  शेर ने गरजते हुए पूछा। खरगोश ने बहुत ही नम्रतापूर्वक जवाब दिया ”महराज, क्या करूँ रास्ते में एक दूसरा शेर मिल गया था। वह मेरा पीछा करने लगा। बहुत मुश्किल से मैं उससे पीछा छुड़ाकर यहाँ आ पाया हूँ।“ शेर

एक हज़ार दीनार

एक समय एक गांव में एक बहुत विद्वान व्यक्ति रहते थे। वह  ईमानदारी के लिए मशहूर थे। एक बार वह लंबी यात्रा के लिए समुद्री जहाज से निकले। उन्होंने सोचा कि सफर में भजन व पानी के लिए कुछ धन रख लेना चाहिए। उनके पास काफी समय से बचाएं हुई एक हजार दीनार थी। उन्होंने को यात्रा के लिए साथ रख लिए।  यात्रा के दौरान उस ज्ञानी व्यक्ति की पहचान दूसरे यात्रियों से हुई। वह उन सबको अच्छी अच्छी ज्ञान की बातें बताते गए। एक यात्री से उनकी नजदीकियां कुछ ज्यादा बढ़ गईं। एक दिन बातों-बातों में उस ज्ञानी व्यक्ति ने उसे दीनार की पोटली दिखा दी। उस यात्री को लालच आ गया। उसने उनकी पोटली हथियाने की योजना बनाई। एक सुबह उसने जोर-जोर से चिल्लाना शुरू कर दिया, 'हाय मैं मार गया। मेरा एक हजार दीनार चोरी हो गया।' वह रोने लगा। जहाज के कर्मचारियों ने कहा - 'तुम घबराते क्यों हो। जिसने चोरी की होगी, वह यहीं होगा। हम एक-एक की तलाशी लेते हैं। वह पकड़ा जाएगा।' यात्रियों की तलाशी शुरू हुई। जब उस ज्ञानी व्यक्ति की बारी आई तो जहाज के कर्मचारियों और यात्रियों ने उनसे कहा, 'आपकी क्या तलाशी ली जाए। आप पर तो शक करना ह

झूठ की सजा

बादशाह अकबर को कीमती वस्तुओं का काफी शोक था। उनके महल में बहुत कीमती सजावट की वस्तुएं थी। उन सभी वस्तुओं में से एक गुलदस्ते से अकबर को खास लगाव था। इस गुलदस्ते को अकबर हमेशा अपने कक्ष में पलंग के पास रखवाते थे।  एक दिन उनके सेवक से अचानक महाराज अकबर का कमरा साफ करते हुए वह गुलदस्ता टूट गया।  सेवक बहुत डर गया और घबराकर उस गुलदस्ते को जोड़ने की बहुत कोशिश की, लेकिन वह नाकाम रहा।  काफी कोशिश करने के बाद भी वो उस गुलदस्ते को जोड़ नहीं पाया और हार कर उसने टूटा गुलदस्ता कूड़ेदान में फेंक दिया। वो सेवक अब दुआ करने लगा कि राजा को इस बारे में कुछ पता न चले। जब कुछ देर बाद महराज अकबर जब महल लौटे, तो उन्होंने देखा कि उनका प्रिय गुलदस्ता अपनी जगह पर नहीं है।  राजा ने सेवक को बुलाया और उस गुलदस्ते के बारे में पूछा। सेवक डर के मारे कांपने लगा।  सेवक ने बहुत सोचा लेकिन जल्दी में कोई अच्छा बहाना नहीं सूझा, तो उसने कहा कि महाराज उस गुलदस्ते को मैं अपने घर ले गया हूं, ताकि उसे अच्छे से साफ कर सकूं।  यह सुनते ही अकबर बोले, “मुझे तुरंत वो गुलदस्ता लाकर दो।” अब सेवक के पास बचने का कोई रास्ता नहीं था। सेवक ने

चीनी और रेत

बादशाह अकबर के दरबार में कार्यवाही चल रही थी।तभी एक दरबारी हाथ मी शीशे का एक बर्तन लेकर वहाँ आया।  अकबर बादशाह ने पूछा - “क्या है इस बर्तन मे?” दरबारी बोला - “इसमे रेत और चीनी का मिश्रण है“ “वह किसलिए” - बादशाह अकबर ने फ़िर पूछा  “माफ़ी चाहता हूँ हुजुर” दरबारी बोला, “हम बीरबल की काबिलियत को परखना चाहते हैं, हम चाहते हैं की वह रेत से चीनी का दाना दाना अलग कर दे” बादशाह अब बीरबल से बोले - “देख लो बीरबल, रोज ही तुम्हारे सामने एक नई समस्या रख दी जाती है, अब तुम्हे बिना पानी मे घोले इस रेत मे से चीनी को अलग करना है “। “कोई समस्या नहीं जहाँपनाह” बीरबल बोले, यह तो मेरे बाएँ हाथ का काम है, कहकर बीरबल ने बर्तन उठाया और दरबार से बाहर चल दिया। बीरबल बाग़ मे पहुंचकर रुका और बर्तन मे भरा सारा मिश्रण आम के एक बड़े पेड़ के चारो और बिखेर दिया “यह आप क्या कर रहे हो?”, एक दरबारी ने पूछा बीरबल बोले - “यह तुम्हे कल पता चलेगा” अगले दिन फ़िर वे सभी उस आम के पेड़ के नीचे जा पहुंचे। वहाँ अब केवल रेत पड़ी थी। चीनी के सारे दाने चीटियाँ बटोर कर अपने बिलों मे पहुंचा चुकी थीं। कुछ चीटियाँ तो अभी भी चीनी के दाने घस

हरा रंग का घोड़ा | Akbar Birbal Stories In Hindi

बादशाह अकबर को अपने शाही बाग में घूमने को बड़ा शौक था। एक दिन बादशाह अकबर अपने घोड़े पर बैठकर शाही बाग में घूमने गए। उनके साथ बीरबल भी था।  वह चारों तरफ हरे-भरे वृक्ष थे और दूर दूर तक हरी-हरी घास थी। ये सब देखकर अकबर को बहुत आनन्द आया।  घूमते घूमते बादशाह अकबर के मन में एक विचार आया। उनको लगा कि बगीचे में सब हरा है तो सैर करने के लिए घोड़ा भी हरे रंग का ही होना चाहिए।  उन्होंने बीरबल से कहा - बीरबल मुझे हरे रंग का घोड़ा चाहिए। तुम मुझे सात दिन में हरे रंग का घोड़ा ला दो। यदि तुम हरे रंग का घोड़ा न ला सके तो हमें अपनी शक्ल मत दिखाना।”  हरे रंग का घोड़ा तो होता ही नहीं है। अकबर और बीरबल दोनों को यह मालूम था। लेकिन अकबर को तो बीरबल की परीक्षा लेनी थी। दरअसल, इस तरह के अटपटे सवाल करके वे चाहते थे कि बीरबल अपनी हार स्वीकार कर लें और कहें कि जहांपनाह मैं हार गया। मगर बीरबल भी अपने जैसे एक ही थे। बीरबल हर सवाल का सटीक उत्तर देते थे कि बादशाह अकबर को मुंह की खानी पड़ती थी।  बीरबल हरे रंग के छोड़ की खोज के बहाने सात दिन तक इधर-उधर घूमते रहे।  आठवें दिन वे दरबार में हाजिर हुए और बादशाह से बोले,

कौवा और कबूतर

एक गांव में एक धनी व्यापारी रहा करता था। उसके घर में एक रसोई थी जिसमे एक कबूतर ने घोंसला बना रखा था ।  किसी दिन एक लालची कौवा वहां से जा रहा था। अचानक उसने देखा वहां रसोई में मछली है और यह देखकर उसके मुह में पानी आ गया।  तब उसके मन में विचार आया कि मुझे इस रसोघर में घुसना चाहिए लेकिन कैसे घुसू ये सोचकर वो परेशान था। तभी उसकी नजर वो कबूतरों के घोंसले पर पड़ी। उसने सोचा कि मैं अगर कबूतर से दोस्ती कर लूँ तो शायद मेरी बात बन जाएँ ।  कबूतर जब दाना चुगने के लिए बाहर निकलता है तो कौवा उसके साथ साथ निकलता है ।  थोड़ी देर बाद कबूतर ने पीछे मुड़कर देखता तो देखा कि कौवा उसके पीछे है। इस पर कबूतर ने कौवे से कहा - भाई तुम मेरे पीछे क्यों हो? इस पर कौवे ने कबूतर से कहा - तुम मुझे अच्छे लगते हो इसलिए मैं तुमसे दोस्ती करना चाहता हूँ। कबूतर ने कहा कि हम कैसे दोस्त बन सकते है? हमारा और तुम्हारा भोजन भी तो अलग अलग है। मैं बीज खाता हूँ और तुम कीड़े।  इस पर कौवे ने चापलूसी दिखाते हुए कहा - “कौनसी बड़ी बात है मेरे पास घर नहीं है इसलिए हम साथ साथ तो रह ही सकते है, है न? और साथ ही भोजन खोजने आया करेंगे तुम अपना औ

भेड़िया और गधा

एक घना जंगल था उसने बहुत सारे जानवर रहा करते थे। वहीं गधा भी रहता था।  एक बार गधा जंगल में घास चर रहा था। अचानक वहां एक भेड़िया आ जाता है।  वो भेड़िया सोचता है कि क्यों ना आज इस गधे का शिकार किया जाये, काफी तंदरुस्त और मोटा ताजा गधा है। इससे तो दो तीन दिन का काम हो जायेगा।  यही सोचकर वो गधे के पास जाता है और बोलता है – अरे गधे! तेरे दिन अब ख़त्म हुए, आज मैं तुम्हें मार के खाने जा रहा हूँ। अचानक गधा घबरा जाता है और हक्काबक्का रह जाता है फिर भी वह साहस नहीं छोड़ता।  फिर कुछ सोचकर भेड़िये से बोलता है – आपका स्वागत है श्रीमान! मुझे कल साक्षात भगवान ने सपने में आकर कहा था कि कोई बड़ा दयालु और बुद्धिमान जानवर आकर मेरा शिकार करेगा और मुझे इस दुनिया के बंधन से मुक्त करायेगा। मुझे लगता है कि आप ही वो दयालु और बुद्धिमान जानवर हैं।  भेड़िया सोचता है कि वाह! ये तो खुद ही मेरा शिकार बनने को तैयार है ज्यादा मेहनत भी नहीं करनी पड़ेगी इसको मारने में।  गधा फिर बोलता है – लेकिन महाराज मेरी एक आखिरी इच्छा है, मैं चाहता हूँ कि आप मुझे खाने से पहले मेरी आखिरी इच्छा जरूर पूरी करें।  भेड़िया बोला- हाँ हाँ क्यों नहीं?

शेर और सियार

वर्षों पहले हिमालय की एक गुफा में एक ताकतवर शेर रहा करता था।  एक दिन वह एक भैंसे का शिकार करके, अपना पेट भरकर अपनी गुफा को लौट रहा था। तभी रास्ते में उसे एक मरियल-सा सियार मिला जिसने उसे लेटकर दण्डवत् प्रणाम किया।  जब शेर ने उससे ऐसा करने का कारण पूछा तो उसने कहा, “महाराज! मैं आपका सेवक बनना चाहता हूँ। कुपया मुझे आप अपनी शरण में ले लें। मैं आपकी सेवा करुँगा और आपके द्वारा छोड़े गये शिकार से अपना गुजर-बसर कर लूंगा।”  शेर ने उसकी बात मान ली और उसे अपनी शरण में रख लिया। शेर जब भी शिकार करता, सियार आखिर में उस शिकार से अपना पेट भर लिया करता। कुछ ही दिनों में शेर द्वारा छोड़े गये शिकार को खा-खा कर वह सियार बहुत मोटा ताजा हो गया। रोज शेर के पराक्रम को देख-देख उसने भी खुद को शेर का प्रतिरुप मान लिया।  एक दिन उसने शेर से कहा, “अरे शेर ! मैं भी अब तुम्हारी तरह शक्तिशाली हो गया हूँ। आज मैं एक हाथी का शिकार करुँगा। आज पहले मैं खाऊगा और उसके बचे-खुचे माँस को तुम्हारे लिए छोड़ दूँगा।”  शेर उस सियार को अपने दोस्त कि तरह मानता था, इसलिए उसने उसकी बातों का बुरा नहीं माना और उसे ऐसा करने से रोका।  भ्रम

पिंकी बनी क्लास की मॉनिटर | motivational stories in hindi

पिंकी को स्कूल जाना बहुत पसंद था। वह रोज स्कूल जाया करती थी। वह पढ़ाई में बहुत होशियार थी और सभी टीचर्स उसको पसंद करते थे। पिंकी अपनी क्लास के सभी बच्चों की अच्छी दोस्त भी थी। एक दिन क्लास टीचर ने पिंकी को बुलाया और सब बच्चों से कहां - पिंकी पढ़ाई में बहुत अच्छी है और हर साल वह क्लास में फर्स्ट आती है। पिंकी स्पोर्ट्स और एक्टिविटीज में भी बहुत अच्छी हैं। इसलिए आज से मैं पिंकी को क्लास का मॉनिटर बनाती हूं। पिंकी ने जवाब दिया - टीचर मैं आज से पहले कभी मॉनिटर नहीं बनी इसलिए मुझे नहीं पता मॉनिटर कैसे बना जाता है। टीचर ने कहा - कोई बात नहीं। मैं तुम्हें सिखाऊंगी। पिंकी ने कहा - ठीक है। अब पिंकी हमेशा टीचर के सामने वाली सीट पर बैठा करती थी। टीचर को जब भी कोई काम होता था तो वह पिंकी से कहती थी।  इस तरह सब कुछ सही चल रहा था। पिंकी भी मॉनिटर बनके बहुत खुश थी। एक दिन टीचर ने पिंकी से कहा कि मुझे कुछ काम है। मैं थोड़ी देर में वापस आऊंगी। तुम पूरी क्लास का ध्यान रखना और देखना कि कोई शोर ना करें। पिंकी ने कहा - ठीक है। टीचर के जाते ही सभी बच्चे उछल-कूद करने लग गए और जोर जोर से बात करने लग गए। पिंकी

एक आदमी के तीन रूप

एक बार बादशाह अकबर ने बीरबल से पूछा - क्या कोई ऐसा आदमी हो सकता है जिसके पास कोई तीन तरह की खूबियां हो?" बीरबल ने कहा - जी हुजूर, ऐसा आदमी हो सकता है। अकबर ने बोला - क्या तुम हमेशा आदमी दिखा सकते हो? और उसमें क्या तीन खूबियां होगी? बीरबल ने जवाब दिया - "जी हुजूर मैं दिखा सकता हूं परन्तु आज नहीं कल। कल मैं आपको पहली तोते की, दूसरी शेर की और तीसरी गधे की गोपियों वाला आदमी दिखाऊंगा" । बादशाह अकबर बहुत खुश हुआ "ठीक है, तुम्हें कल का समय दिया जाता है", बादशाह ने इजाजत देते हुए कहा। अगले दिन बीरबल एक व्यक्ति को पालकी में डालकर लाया और उसे पालकी से बाहर निकाला।  फिर उस आदमी को शराब का एक प्याला दिया। शराब पीकर वह आदमी डरकर बादशाह से विनती करने लगा- "हुजूर! मुझे माफ कर दो। मैं एक बहुत गरीब आदमी हूं।"  बीरबल ने बादशाह को बताया, "यह तोते की बोली है" कुछ देर बाद उस आदमी को एक प्याला और दिया तो वह नशे में बादशाह से बोला, "अरे जाओ, तुम दिल्ली के बादशाह हो तो क्या, हम भी अपने घर के बादशाह हैं। हमें ज्यादा नखरे मत दिखाओ" बीरबल ने बताया, "यह

राजू और जादुई घंटी | Moral stories for kids in hindi

एक गांव में राजू नाम का एक लड़का था वह अपनी मां और छोटी बहन के साथ रहता था। वो रोज आसपास की बकरियां चराने जंगल में एक पर्वत के पास जाता था। वहां एक विशाल पेड़ था। राजू उस पेड़ की छांव में गाना गाता था इसलिए वहां के सभी पंछियों संग उसकी अच्छी दोस्ती हो गई थी। वो सारी भेड़ बकरियों पर नजर भी रखता था। शाम होते ही राजू वापस अपने गांव आ कर सभी भेड़ बकरियों को अपने अपने मालिकों को सौंप देता था। दिनभर भेड़ बकरियों की देखभाल करने के लिए सभी लोगों से उसे कुछ पैसे मिलते थे। इन पैसों से राजू और उसके परिवार का घर चलता था। इन पैसों से राजू के परिवार को खाना मिल जाया करता था लेकिन कभी-कभी उसकी छोटी बहन को और अच्छा खाना खाने का मन करता था। वो हर दिन रुखा सुखा खा कर बोर गई थी।  यह बात राजू समझता था पर कर भी क्या सकता था? वो चाहता था कि उसकी बहन अच्छी पढ़ाई करें इसलिए वो पैसे जोड़ता था। अगले दिन जब राजू भेड़ बकरियां चराने जंगल में पहुंचा तो उसने देखा कि एक लकड़हारा उस पेड़ को काट रहा था जिसके नीचे बैठकर राजू अपनी बकरियों को चराया करता था। यह देख कर रहे बहुत दुखी हुआ। वह सोचने लगा कि क्या किया जाए तभी अच

राजा और एक बोरी गेहूं | hindi story online

प्रतापनगर एक बहुत ही संपन्न राज्य था। वहाँ के राजा बहुत ही प्रतापी थे और प्रजा का पूरा ख्याल रखते थे। राजा ने पूरे जीवन प्रजा की मन से सेवा की थी लेकिन अब वह बूढ़े हो चले थे तो मन में बड़ी दुविधा थी कि उनके बाद राज्य को कौन चलाएगा? राजा साहब के 3 बेटे थे। अब तीनों ने एक ही गुरु और एक ही विद्यालय से शिक्षा ली थी लेकिन राजा ये निर्णय नहीं कर पा रहे थे कि कौन राज्य के लिए सबसे अच्छा उत्तराधिकारी है। अब राजा ने तीनों बेटों की परीक्षा लेने की सोची। एक दिन राजा ने सुबह सुबह सभी पुत्रों को बुलाया और उन सबको एक एक बोरी गेहूं देते हुए कहा कि मैं और तुम्हारी माता तीर्थ यात्रा पर जा रहे हैं। हमें वापस आने में एक वर्ष से भी ज्यादा लग सकता है। तुम तीनों की ये जिम्मेदारी है कि अपने हिस्से के गेहूं को संभाल के रखना और जब मैं वापस लौटूं तो तुमको ये गेहूं की बोरी वापस लौटानी है। ऐसा कहकर राजा और रानी तीर्थ यात्रा पर चल दिए। सबसे बड़े बेटे से सोचा ये गेहूं की बोरी पिताजी को वापस लौटानी है तो इसे मैं तिजोरी में बंद कर देता हूँ। जब पिताजी आएंगे तो वापस दे दूंगा। यही सोचकर उसने गेहूं की बोरी तिजोरी में रखवा द

एक छोटा सा बदलाव

एक लड़का सुबह सुबह दौड़ने को जाया करता था। आते जाते वक्त वो एक बूढी महिला को देखता था।  वो बूढी महिला तालाब के किनारे छोटे छोटे कछुवों की पीठ को साफ़ किया करती थी। एक दिन उसने इसके पीछे का कारण जानने की सोची। वो लड़का महिला के पास गया और उनका अभिवादन कर बोला - नमस्ते आंटी ! मैं आपको हमेशा इन कछुवों की पीठ को साफ़ करते हुए देखता हूँ आप ऐसा किस वजह से करते हो?"  महिला ने उस मासूम से लड़के को देखा और लड़के को जवाब दिया - मैं हर रविवार यहाँ आती हूँ और इन छोटे छोटे कछुवों की पीठ साफ़ करते हुए सुख शांति का अनुभव लेती हूँ।"  आगे महिला ने कहा - "क्योंकि इनकी पीठ पर जो कवच होता है उस पर कचरा जमा हो जाने की वजह से इनकी गर्मी पैदा करने की क्षमता कम हो जाती है, इसलिए ये कछुवे तैरने में मुश्किल का सामना करते है। कुछ समय बाद तक अगर ऐसा ही रहे तो ये कवच भी कमजोर हो जाते है इसलिए कवच को साफ़ करती हूँ।" यह सुनकर लड़का बड़ा हैरान था। उसने फिर एक जाना पहचाना सा सवाल किया और बोला - "बेशक आप बहुत अच्छा काम कर रहे है लेकिन फिर भी आंटी एक बात सोचिये कि इन जैसे कितने कछुवे है जो इनसे

सुन्दर घोडा

एक जगह एक सुन्दर घोडा घास चरा करता था लेकिन उसको हमेशा डर लगा रहता था क्यूंकि उसी इलाके में एक बाघ भी कभी कभार दिख जाता था।  लेकिन फिर भी चारा खाने वह घोडा उस इलाके में रोज आता था।  एक दिन उसको वही पर एक शिकारी मिला। घोड़े ने उस शिकारी से अपनी परेशानी साझा की।  शिकारी ने बोला "मुझे डर नहीं लगता क्यूंकि मेरे पास बन्दूक है और इससे मै किसी भी जानवर को मार गिरा सकता हु।" यह सुन कर घोड़े ने शिकारी से पूछा की क्या शिकारी उसकी मदद कर सकता है।  शिकारी ने उसको बोला "मेरे साथ रहो ,तुम्हारी जान को कभी ख़तरा नहीं होगा।"  घोडा मान गया और वह शिकारी उसके ऊपर बैठ कर उसको शहर के एक अस्तबल में पैसों के बदले छोड़ आया।  घोडा सोचना लगा 'मुझे जान से खतरा तो हट गया लेकिन मेरी आजादी छीन गयी।' MORAL: दूसरे छोर पर हमेशा हरियाली दिखती है। लालच में हम वह सब भी गवा देते हैं जो हमारे पास होता है।

चालाक खरगोश और भेड़िया

एक बार एक चीकू नाम का खरगोश था। एक दिन वह अपनी पत्नी के साथ बाग में धूम रहा था।  जब उसकी पत्नी ने पेड़ पर मीठे-मीठे फल लटके देखे तो उसके मुँह में पानी आ गया उसने चीकू से फल तोड़कर लाने को कहा। इस पर चीकू ने कहा कि यह बाग एक भेड़िये का है जो बहुत ही खूँखार है। अगर उसे पता चल गया कि हमने फल तोड़े है तो वह हम दोनों को मार कर खा जायेगा। परन्तु चीकू की पत्नी उसके समझाने पर भी ना मानी हारकर चीकू को फल तोड़ने जाना पड़ा।  चीकू ने जैसे ही फल तोड़ने शुरू करे, वहाँ भेड़िया आ गया। चीकू फौरन फल लेकर भगा और पास पड़े एक ड्रम में घुस गया और उस ड्रम में फल रखकर बाहर आकर चुपचाप खड़ा हो गया।  तभी भेड़िया वहाँ आ गया और उसने चीकू से पूछा कि क्या उसने किसी खरगोश को वहाँ से फल ले जाते हुए देखा है।  चीकू फौरन समझ गया कि भेड़िये ने उसे पहचाना नहीं । उसने भेड़िये से कहा कि अभी-अभी एक खरगोश को मैने इस ड्रम में घूसते हुए देखा है । उसके पास बहुत से फल थे। भेड़िया ड्रम के पास गया तो उसे उसमें से फलों की खुशबू आ रही थी। भेड़िया खरगोश को मारने के लिए उस ड्रम में घूस गया।  चालाक चीकू के फटाफट ड्रम का ढकन बंद कर दिया ।

मगरमच्छ और बंदर की कहानी

किसी नदी के किनारे एक बहुत बड़ा पेड़ था। उस पेड़ पर एक बन्दर रहता था।  उस पेड़ पर बड़े मीठे फल लगते थे। बन्दर उन्हे भरपेट खाता और मौज उड़ाता ।  वह अकेले ही मजे में दिन गुजार रहा था एक दिन एक मगरमच्छ उस नदी में से पेड़ के नीचे आया।  बन्दर के पूछने पर मगरमच्छ ने बताया की वह वहाँ खाने की तलाश में आया है इस पर बन्दर ने पेड़ से तोड़कर बहुत से मीठे फल मगरमच्छ को खाने के लिए दिए।  इस तरह बन्दर और मगर में दोस्ती हो गई । अब मगर हर रोज़ वहाँ आता और दोनों मिलकर खूब फल खाते ।  बन्दर भी एक दोस्त पाकर बहुत खुश था।  एक दिन बात-बात में मगरमच्छ ने बन्दर को बताया की उसकी एक पत्नी है जो नदी के उस पार उनके घर में रहती है।  तब बन्दर ने उस दिन बहुत से मीठे फल मगरमच्छ को उसकी पत्नी के लिए साथ ले जाने के लिए दिए ।  इस तरह मगरमच्छ रोज़ जी भरकर फल खाता और अपनी पत्नी के लिए भी लेकर जाता।  मगरमच्छ की पत्नी को फल खाना तो अच्छा लगता पर पति का देर से घर लौटना पसन्द नहीं था।  एक दिन मगरमच्छ की पत्नी ने मगरमच्छ से कहा कि अगर वह बन्दर रोज-रोज इतने मीठे फल खाता है तो उसका कलेजा कितना मीठा होगा। मैं उसका कलेजा खाना चाहती

मक्खी का लालच

एक बार एक व्यापारी अपने ग्रहक को शहद बेच रहा था। तभी अचानक व्यापारी के हाथ से फिसलकर शहद का बर्तन गिर गया ।  बहुत सा शहद भूमि पर बीखर गया । जितना शहद ऊपर-ऊपर से उठाया जा सकता था उतना व्यापारी ने उठा लिया । परन्तु कुछ शहद फिर भी ज़मीन पर गिरा रह गया । कुछ ही देर में बहुत सी मक्खियाँ उस ज़मीन पर गिरे हुए शहद पर आकर बैठ गयीं। मीठा मीठा शहद उन्हें बड़ा अच्छा लगा। वह जल्दी-जल्दी उसे चाटने लगी। जब तक उनका पेट भर नहीं गया वह शहद चाटती रहीं । जब मक्खियों का पेट भर गया और उन्होने उड़ना चाहा. तो वह उड़ ना सकीं। क्योंकि उनके पंख शहद में चिपक गए थे।  उड़ने के लिए उन्होने बहुत कोशिश की परन्तु वह फिर भी उड़ ना पाई। वह जितना छटपटाती उनके पंख उतने चिपकते जाते। उनके सारे शरीर में शहद लगता जाता । काफी मक्खियां शहद में लोट-पोट होकर मर गायी । बहुत सी मक्खियाँ पंख चिपकने से छट पटा रहीं थीं । परन्तु तब भी नई मक्खियां शहद के लालच में वहाँ आती रहीं।  मरी हुई और छटपटाती मक्खियों को देखकर भी वह शहद खाने का लालच नहीं छोड़ पाई।  मक्खियों की दुर्गति और मूर्खता देखकर व्यापारी बोला - जो लोग जीभ के स्वाद के लालच में

कौआ चला मोर बनने

एक कौए ने बहुत सारे मोर पंख इकट्ठे किए और उन्हें अपने शरीर पर लगा लिए।  उसे अपना नया रूप बहुत अच्छा लगा और उसने निश्चय किया कि अब वह कौओं के साथ नहीं, बल्कि मोरों के साथ रहेगा।  इसके बाद वह अपने पुराने साथियों का तिरस्कार करके वहाँ से चला गया और मोरों के झुंड में मिलने की कोशिश करने लगा।  हालांकि, मोरों ने तुरंत पहचान लिया कि उनके बीच में एक कौआ आ गया है।  उन्होंने अपनी चाँचों से नोच-नोंचकर कौर के तन पर लगे मोर पंख नोच डाले और उसका मजाक उड़ाने लगे।  अपमानित और दुखी कौआ भारी मन से अपने घर वापस लौट आया।  सारे सादी कौए सिर हिलाते उसके पास आ पहुंचे और कहने लगे, "तुम बहुत ही बुरे जीव हो! अगर तुम अपने ही पंखों से संतुष्ट रहते तो तुम्हें दूसरों से इस तरह का अपमान नहीं सहना पड़ता।"

कपटी बाज़

एक बाज़ एक पेड़ की डाली पर रहता था। उसी पेड़ की खोह में एक लोमड़ी रहती थी। एक दिन, जब लोमही अपनी खोह से निकली तो बाज उसमें घुस गया और लोगड़ी के बच्चों को उठाकर ले गया।  जब लोमडी लौटी, तो उसने बाज से अनुरोध किया कि उसके बच्चे लौटा दे। बाज़ जानता था कि लोमड़ी उसके घोंसले तक नहीं पहुँच पाएगी। उसने लोमड़ी के अनुरोध पर कोई ध्यान नहीं दिया।  लोमड़ी पास के एक मंदिर गई और यहाँ से जलती हुई लकड़ी लेकर आई। उसने पेड़ के नीचे आग लगा दी।  आग की गमी और धुएँ से बाज हर गया। अपने बच्चों की जान बचाने के लिए वह जल्दी से लोमड़ी के पास आया और उसके बच्चे लौटा दिए। शिक्षा:- निर्दयी व्यक्ति जिनका दमन करता है, उनसे उसे हमेशा ख़तरा रहता है।

बिल्ली और बंदर

एक गाँव में दो बिल्लियाँ रहती थीं । वह आपस में बहुत प्यार से रहती थीं। उन्हे जो कुछ मिलता था, उसे आपस में बाँटकर खाया करती थीं।  एक दिन उन्हे एक रोटी मिली। उसे बराबर-बराबर बाँटते समय उनमें झगड़ा हो गया। एक बिल्ली को अपनी रोटी का टुकड़ा दूसरी बिल्ली के रोटी के टुकड़े से छोटा लगा। परन्तु दूसरी बिल्ली को अपनी रोटी का टुकड़ा बड़ा नहीं लगा। जब दोनों बिल्लियाँ किसी समझौते पर नहीं पहुंच पाई तो दोनों बिल्लियाँ एक बंदर के पास गयीं।  उन्होनें बंदर को सारी बात बताई और उससे न्याय करने के लिये कहा।  सारी बात सुनकर बंदर एक तराजु लेकर आया और दोनों टुकड़े एक-एक पलडे में रख दिये।  तोलते समय जो पलड़ा भारी हुआ, उस वाली तरफ से उसने थोड़ी सी रोटी तोड़कर अपने मुंह में डाल ली ।  अब दूसरी तरफ का पलड़ा भारी हो गया, तो बंदर ने उस तरफ से रोटी तोड़कर अपने मुंह में डाल ली। इस तरह बंदर कभी इस तरफ से तो कभी उस तरफ से रोटी ज्यादा होने का कहकर रोटी तोड़कर अपने मुंह में डाल लेता।  दोनों बिल्लियाँ चुपचाप बंदर के फैसले का इंतज़ार करती रही। परन्तु जब बिल्लियों ने देखा कि रोटी के दोनों टुकड़े बहुत छोटे-छोटे रह गये तो वह बं

शेर और तीन बैलों की कहानी

एक बार की बात है। तीन बैल आपस में बहुत अच्छे दोस्त थे। वे साथ मिलकर घास चरने जाते और बिना किसी राग-द्वेष के हर चीज आपस में बांटते थे।  एक शेर काफी दिनों से उन तीनों के पीछे पड़ा था, लेकिन यह जानता था कि जब तक ये तीनों एकजुट है, तब तक वह उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकता। शेर ने उन तीनों को एक-दूसरे से अलग करने की चाल चली। उसने बैलों के बारे में अफवाहें उडानी शुरू कर दी। अफवाहें सुन-सुनकर उन तीनों के बीच गलतफहमी पैदा हो गई। धीरे-धीरे वे एक-दूसरे से जलने लगे। आखिरकार एक दिन उनमें झगड़ा हो। झगड़े के बाद तीनों बैल अलग अलग रहने लगे।  शेर को लिए यह बहुत अच्छा अवसर था। उसने इसका पूरा लाभ उठाया और एक-एक करके तीनों बैलों को उसने मार डाला और खा गया। शिक्षा:- एकता में ही शक्ति होती है।

राजा और बंदर

एक बार की बात है एक राजा था। उस राजा को बंदरों से बहुत लगाव था । राजा का मानना था कि बंदर मनुष्यों जैसे ही बुद्धिमान होते हैं। एक बंदर तो उसके निजी सेवक के रूप में भी काम किया करता था।  जब राजा अपने शयनकक्ष में होता तो वह बंदर बाहर राजा की पहरेदारी करता रहता। एक बार राजा जंगल में शिकार खेलने गया। वह काफी दिनों बाद वापस लौटा। वह काफी थक चूका था, अत: आते ही वह शयनकक्ष में आराम करने चला गया।  उसने बंदर को आदेश दिया कि किसी को भी उसकी नींद में खलल न डालने दे।  बंदर आदेश का पालन करने के लिए वहीं राजा के पास नंगी तलवार हाथ में लेकर बैठ गया।  थोड़ी देर बाद बंदर ने देखा कि एक मक्खी शयनकक्ष में घुस आई और वह राजा की नाक पर बैठ गई।  बंदर ने उसे उड़ाना चाहा लेकिन मक्खी वहीं आस-पास मंडराती रही। वह बार-बार राजा की नाक पर बैठती और उड़ जाती।  अब बंदर से रहा न गया, इस बार जैसे ही मक्खी राजा की नाक पर बैठी, बंदर ने गुस्से में उस पर तलवार चला दी। मक्खी का तो क्या होना था, वह तो उड़ गई, लेकिन राजा का सिर जरूर धड़ से अलग हो गया| शिक्षा: मूर्खों कि संगति से हमेशा अपना ही नुकसान होता है।

किसान की समस्या | Motivational story in Hindi

एक समय की बात है एक किसान एक बकरी, एक शेर,  और एक घास का गट्ठर को लेकर नदी के किनारे खड़ा था। वहां नदी के किनारे एक नाव थी। वह उस नाव से नदी पार करना चाहता था, लेकिन नाव बहुत छोटी थी।  वह सारे सामान समेत एक बार में पार नहीं कर सकता था। यह उसके लिए एक समस्या थी। वह नाव पर अपने साथ केवल 1 चीज़ ही साथ ले जा सकता था वरना नाव डूब सकती थी। अब समस्या यह थी कि अगर वह शेर को पहले ले जाकर नदी पार छोड़ आता है तो इधर बकरी घास खा जाती और अगर घास को पहले नदी पार ले जाता है तो शेर बकरी को खा जाता। किसान ने कुछ तरकीब सोची। उसे एक समाधान सूझ गया। उसने पहले बकरी को साथ में लिया और नाव में बैठकर नदी के पार छोड़ आया।  इसके बाद दूसरे चक्कर में उसने शेर को नदी पार छोड़ दिया, लेकिन लौटते समय बकरी को फिर से अपने साथ किनारे की दूसरी तरफ ले आया। अब इस बार उसने बकरी को नाव से उतारा और घास के गट्ठर को नाव में रख कर दूसरी और शेर के पास छोड़ आया। शेर घास के ढेर को नहीं खा सकता था इसलिए वह अब बिना किसी फ़िक्र के बकरी को लेने जा सकता था। वह नाव लेकर गया और बकरी को भी ले आया। इस प्रकार उसने नदी पार कर ली और खुशी खुशी अपने

चीकू खरगोश की समझदारी

एक घने जंगल में कहीं दूर एक झील थी। उस झील के बारे में एक बात कही जाती थी की  शाम के बाद अगर कोई भी उस झील में पानी पिने के लिए जाता था तो  वो वापस नहीं आता था। इस वजह से वह झील खूनी झील के नाम से जानी जाती थी। एक दिन एक हिरण उस जंगल में रहने के लिए आया। उसकी मुलाकात जंगल में जग्गू बन्दर से हुई। जग्गू बन्दर ने चुन्नू हिरण को जंगल के बारे में सब बताया लेकिन उस झील के बारे में बताना भूल गया। जग्गू बन्दर ने दूसरे दिन चुन्नू हिरण को जंगल के सभी जानवरों से मिलाया। जंगल में चुन्नू हिरण का सबसे अच्छा दोस्त एक चीकू खरगोश बन गया। चुन्नू हिरण को जब ही प्यास लगती थी तो वह उस झील में पानी पिने जाता था। वह शाम को भी उसमें पानी पिने जाता था। एक शाम को वह उस झील में पानी पिने गया तो उसने उसमें बड़ी तेज़ी से अपनी और आता हुआ मगरमच्छ देख लिया। जिसे देखकर वह बड़ी तेज़ी से जंगल की तरफ भागने लगा। रास्ते में उसको जग्गू बन्दर मिल गया। जग्गू ने चुन्नू हिरण से इतनी तेज़ भागने का कारण पूछा। चुन्नू हिरण ने उसको सारी बात बताई। जग्गू बन्दर ने कहा की मै तुमको बताना भूल गया था की वह एक खुनी झील है। जिसमे जो भी शाम क