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किसान और पंख

एक गांव में एक किसान रहता था। एक दिन उस किसान की अपने पड़ोसी से लड़ाई हो गई। उसने अपने पडोसी को भला बुरा कह दिया और काम पर चला गया।


थोड़ी देर बाद काम करते करते हैं उसे अपनी गलती का एहसास हुआ। उसने अपने मन को कहीं हुए करने की बहुत कोशिश की, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।

उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या करें, तो वह पास के जंगल में एक संत के पास गया। 

उसने संत से अपने शब्द वापस लेने का उपाय पूछा।

संत ने किसान से कहा , ”तुम खूब सारे पंख इकठ्ठा कर लो , और उन्हें शहर के बीचो-बीच जाकर रख दो” 

किसान ने सोचा कि शायद इससे कोई हल निकाल सकता है और उसने ऐसा ही किया। 

खूब सारे पंख इकट्ठे किए और उन सबको शहर के बीचो बीच जाकर रख आया और फिर संत के पास पहुंच गया।

तब संत ने कहा - ”अब जाओ और उन पंखों को इकठ्ठा कर के वापस ले आओ”

किसान वापस गया लेकिन तब तक सारे पंख हवा से इधर-उधर उड़ चुके थे।  

किसान खाली हाथ संत के पास पहुंचा।

संत ने उससे कहा - "ठीक ऐसा ही तुम्हारे द्वारा कहे गए शब्दों के साथ होता है, तुम आसानी से इन्हें अपने मुख से निकाल तो सकते हो पर चाह कर भी वापस नहीं ले सकते"

शिक्षा:
हमेशा याद रखें कि कभी-कभी हम गुस्से में आकर किसी को इतना बुरा भला कह देते हैं जितना कि उसकी गलती भी नहीं होती।

आप उस व्यक्ति से क्षमा जरूर मांग सकते हैं, लेकिन कुछ भी करके आप अपने शब्द वापस नहीं ले सकते।

क्रोध में कहीं गई गलत बात किसी को भी दुख पहुंचा सकती है। 

जब आप किसी को बुरा कहते हैं तो वह उसे कष्ट पहुंचाने के लिए होता है पर बाद में वो आप ही को अधिक कष्ट देता है. खुद को कष्ट देने से क्या लाभ, इससे अच्छा तो है की चुप रहा जाए.

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